मनमोहन जी ,हमें और शर्मसार मत कीजिये - पिछला लेख ब्लाग में डालने के बाद मैंने यह तय कर लिया था कि अब इस मुद्दे पर कम से कम प्रधानमंत्री को लेकर कोई लेख नही लिखूँगी क्योंकि मुझे लगता था कि अब मनमोहन जी कुछ ऐसा नही कह सकते जिस पर देश और शर्मिन्दा होगा पर चंद घण्टों में ही मेरा विचार गलत निकला । जब पूरा आप्रेशन खत्म होने को था तभी एक समाचार न्यूज़ चैनल पर प्रसारित हुआ ,
भारतीय प्रधानमंत्री ने फोन कर पाक प्रधानमंत्री से आई.एस.आई चीफ को भारत भेजने को कहा ।
खबर है कि पाक प्रधानमंत्री ने पहले हामी भर फिर इंकार कर दिया है ।
यह पता नही कि मनमोहन जी ने फोन खुद किया था या किसी के कहने पर किया । अगर खुद किया था ( वैसे देश को उम्मीद तो नही कि इतना बड़ा काम वो खुद कर सकते है ) फिर भी अगर खुद किया है तो फिर तो देश यही चाहेंगा कि वे आगे से हर काम पूछ के किया करें और अगर पूछ कर किया था तो देश यही दुआ करेगा कि अक्ल भी बाज़ार में जल्द से जल्द मिलने लग जायें ताकि सरकार चला रहें लोगों का भला हो जायें । वैसे मैंने बहुत सोचा पर यह समझ नही आया कि वे आई.एस.आई चीफ को भारत क्यों बुलाना चाहते थे ? क्या उसे बंदी बनाना चाहते थे या उसे भारत भ्रमण करवाने का इरादा था ? नही तो कही उससे पार्टी के लिये चुनाव प्रचार या वोट तो नही चाहते थे ? यह सब काम मुश्किल है । बंदी बना नही सकते और भारत-भ्रमण में सुरक्षा का खतरा होगा ,भई देश में जगह-जगह धमाके और आतंकवादी हमले हो रहे है । अब वे देशवासी तो है नही कि जिस के लिये चिन्ता ना होगी ,अरे अगर वह मर-वर गया ना तो उसे दफनाने या उसकी लाश उसके मुल्क भेजने का खर्चा भी आप ही को करना होगा और अगर हाथ-पाँव तुड़वाकर सात-आठ महीने के लिये अस्पताल भर्ती हो गया तो उसके खाने-पीने और उसकी शरीर की सिलाई का खर्चा भी आप ही को देना होगा । और अगर उससे पार्टी के लिये चुनाव प्रचार या वोट चाहते थे तो वह भी मुश्किल होता । चुनाव प्रचार में चुनाव आचार-संहिता आड़े आती और वोट करने पर बोगस वोटिंग का मामला बनता । और चुनाव आयोग नोटिस थमा देता ,इस तरह लेने के देने पड़ जाते ,बच गये ।
इसलिये देश मनमोहन जी से उम्मीद करता है कि जो काम वे अभी तक कर रहें थे वही करे । बुश को फोन करे , फीता काटे ,बुतों पर से पर्दा हटाये ,मैडम जी की जी-हजूरी करे ,राहुल को देश का तो क्या चाहें तो सारे विश्व का भविष्य बता दें और लोगों को खुशी-गमी के संदेश भेजे । पर देशवासियों की सुरक्षा और समस्याओं जैसे छोटे-मोटे काम रहने दे ।
सलाम उन शहीदों को - मुंबई हमले में जिन वीरों ने शहादत दी है उन की वीरता पर बोलने के लिये कोई शब्द नही है हमारे पास । पूरा देश ऋणी है उनका । इन में ऐसे भी कई शहीद होगें जिन्होंने बिना वर्दी और हथियार के अदम्य साहस का परिचय देते हुये दूसरों के प्राण बचाते हुये अपना जीवन कुर्बान कर दिया । उन अन्जान चेहरों और देश के बहादुर सिपाहियों को मेरा शत-शत नमन ।
“ कोई सिख ,कोई जाट ,मराठा ,कोई बंगला ,कोई गुजराती ,
इस हमले में मरने वाला हर वीर था भारतवासी ।“
“ थी खून से लथपथ काया ,फिर भी बँदूक उठा कर ,
दस-दस को एक ने मारा ,फिर गिर गये होश गँवा कर ,
जब अंत समय आया तो कह गये कि अब चलते है ,
खुश रहना देश के प्यारों अब हम तो सफर करते है “
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“ जय हिन्द ,जय हिन्द ,जय हिन्द की सेना ।“
6 comments:
वाह, बिल्कुल अलग नजरिया पेश किया आपने। मुझे भी यही लगा था कि दिल्ली के चुनाव को ध्यान में रखकर ये खबर इस्लामाबाद से प्लान कराई गई है और कोशिश की गई है कि जनता की थू-थू से थोड़ा बचा जा सके। और हुआ भी यही, इधर आधी वोटिंग भी नहीं हुई थी कि पाकिस्तान से खबर आई कि वे आईएसआई के चीफ को नहीं भेज रहे हैं। उसके बाद से ही भारत के प्रधानमंत्री के मुंह में ताला लग गया है।
बिल्कुल सही चित्रण किया है आपने.
अब क्या कहें, सरकार चाहे अटल बिहारी वाजपेयी की हो या मनमोहन सिंह की, आतंकवाद हमारी नियति है। ये तो केवल भूमिका बन रही है, हम पर और बड़ी विपत्तियां आने वाली हैं।क्यूं कि 2020 तक महाशक्ति बनने का सपना देख रहे इस देश की हुकूमत चंद कायर और सत्तालोलुप नपुंसक कर रहे हैं।
जिस देश में मरते दम तक आदमी कुर्सी से चिपके वहां और हो भी क्या सकता है. अर्जुन बाबू को ही देख लीजिये. लेकिन आप अन्दर की बातों को सार्वजनिक क्यों कर रहे हैं.
शानदार - बहुत सही चित्रण है, क्या आपकी जादू भरी लेखनी का एक लेख हमारे ब्लॉग को भी उपलब्ध होगा -
हमारा ब्लॉग : wehatepakistan.blogger.com
लेख ईमेल द्वारा भेजे : we.hate.pak.post@blogger.com
ईमेल भेजे : we.hate.pak@gmail.com
- देश प्रेमी
correction-
wehatepakistan.blogspot.com
कल से मेरे मन में भी यही बात आ रही है। अक्ल घास चरने गयी होगी शायद मंत्रीजी की। बाकी, जब तक जाँच पूरी नहीं हो जाती, और जिसके खिलाफ सुबूत जा रहे हों उसे ही जाँच में सहयोगी बनाना एक मूर्ख ही सोच सकता है।
यानि बिल्ली को दूध का पहरा देने बिठाने जैसी बात हुई यह तो।
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