Monday, December 1, 2008

मनमोहन जी , कामपैलन पीते हो या बोर्नवीटा ?

मुझे समझ नही आता कि ईश्वर जब अक्ल बाँट रहे थे तो सरकार चला रहे लोग कहाँ थे ? दौरे पर थे या मैडम की जी-हजूरी कर रहे थे । लोग गुस्से से भरे हुये है और यह वही घिसे पिटे ब्यान देकर उनके गुस्से को और बड़ा रहे है । उससे भी अधिक गुस्सा आत है उनके हाव-भाव को देख कर । पुराने ब्यान और चकाचक कपडों के साथ अपनी बत्तीसी दिखाते हुये प्रेस कान्फ्रेंस करेगें । जब लोग मर रहें है तो ऐसे में यह कैसे अपना दिमाग (अगर है ) ठण्डा कैसे रखते है ,चाँदी वाला च्वनप्राश खाते है क्या ? पिछले कुछ दिनों में मनमोहन जी की देख कर तो मुझे पूरा यकीन हो गया है कि वे कोई ना कोई एनर्जी ड्रिंक तो लेते ही है । वर्ना इतनी चुस्ती-फुर्ती तथा बहादुरी दिखा सकते थे ? यह चुस्ती-फुर्ती नही तो और क्या है कि जो काम वे साढ़े चार सालों मे करते आये है वो सारे काम उन्हें मात्र चार दिन में करने पड़े ,बुश को फोन ,मैडम जी की जी-हजूरी ,राहुल बाबा से झाड़ । इन सारे कामों को एक के बाद एक चुस्ती से करने के लिये एनर्जी की ज़रुरत तो पड़्ती ही है । और बहादुरी की बात करे तो क्या यह बहादुरी नही कि साढे चार सालों से वे इतनी लाशों का बोझ उठा रहें है पर रोना तो दूर कभी भी आँखें तक नम नही की , हर बार पिछ्ले हादसे को भूल अगले हादसे का इंतज़ार करने लगते है । अब सवाल यह है कि कामपैलन पीते है या बोर्नवीटा ?

इन के ब्यानों से इतनी सड़ांध आती है कि इनकी तुलना कूड़े-कर्कट की गंदगी  से भी नही हो सकती । उससे से भी उपयोगी खाद बनाई जा सकती है इनके विचारों से सिवा बदूब के और कुछ नही उठता ।

‘ महान ’ शिवराज पाटिल का जाना – शिवराज जी के इस्तीफे से मेरे मन में दो सवाल उठे -

पहला - शिवराज जी के जाने पर खुश होये या नही ।

दूसरा - शिवराज जी के इस्तीफे का असली कारण ।

तय नही कर पायी कि शिवराज जी के जाने पर खुश होना चाहिये या नही । इस की वजह है कि चिदम्बरम जी का गृहमंत्री बनना । यह वह ‘ महान ’ बंदा है जिसे देश का सबसे दमदार मंत्रालय दिया गया था उसका कैसे इस ने दम निकाला है ,उससे हम सब वाकिफ है । अब की बार उसे वह मंत्रालय दिया है जिसका पहले ही दम निकला है ,अब उसका यह और क्या-क्या निकालेगा ,यह देखने वाली बात होगी ।

अब बात करें शिवराज जी के इस्तीफे का असली कारण की । इसका असली कारण है मैडम जी को हिन्दी देर से समझ आना । आज तक कांग्रेस दूसरों पर साम्प्रादायिक होने का आरोप लगाती रही ,पर अब जा कर कांग्रेस की मैडम जी  को समझ आया कि साम्प्रदायिकता तो उसके अपने घर में है । उनके लिये हिन्दू हर तरह से साम्प्रदायिकता का प्रतीक है ,पर इस सरकार में ज़्यादातर मंत्रीयों के नाम या तो हिन्दू देवी-देवताओं के नाम पर है या उनके वाहन के नाम पर या हिन्दू प्रतीकों के नाम पर । जैसे शिव ,शंकर राम ,अर्जुन,प्रसाद, ,सोमनाथ ,शरद ,अमर ,सिंह ,मीरा ,प्रणव वगैरहा-वगैरहा ।

यह बात मैडम जी को चार साल बाद समझ में आयी ,हिन्दी कमज़ोर है ना उनकी । जब नाम के मतलब समझ में आयें तो उन्होंने मनमोहन जी को बुला उन से शिकायत की । तब मनमोहन जी का जवाब था मैडम हिन्दी तो मुझे भी कहाँ आती है ,मैं तो इन्डियन हूँ हिन्दोस्तानी नही । अगर हिन्दोस्तानी होता तो रोज़ हिन्दोस्तानियों को मरता देख मेरा दिल ना रोता । अब अगर बाकी अपनी गद्दी बचाना चाहते है तो फौरन धर्म-स्थलों की और भागें ( बेवकूफों मन्दिरों की और मत भागना , गद्दी तो जायेगीं-जायेगीं ,हो सकता है आंतकी बन जेल पहुँच जाओ ) , अपना नाम बदलें हो सके तो अपने नाम में कुछ घटा-बढ़ा ले । बच जाओगे ।

3 comments:

sandeep sharma said...

good...

महेन्द्र मिश्र said...

बोर्नविटा खायेंगे तो पहलवान हो जायेंगे . मनमोहन जी को मिन्टास खाना चाहिए जी क्या बात है वाह

प्रदीप मानोरिया said...

आपका चिंतन बेहद सटीक है बहुत सुंदर .. मेरे ब्लॉग पर पुन: पधारें