Tuesday, February 17, 2009

खबरें और मेरी कलम की चुटकी

सर्दी फिर बढ़ गयी है ऐसे में चुटकी मारने से बेहतर तो कोई काम दिख नही रहा ,लीजिये मैंने चुटकी मारी है आप भी मज़ा लीजिये ।

अमर सिंह मंच से गिरे - एक समाचार ।

चरित्र से तो पहले ही गिरे थे अब मंच पर से भी गिरने लगे ।

शाहरुख बहुत बोलते है - आमिर खान ।

बहुत बोलना तो अभी सीखा है एक फिल्म में तो बेचारे पूरी फिल्म में क-क-क-किरण ही कह पाये थे ।

राहुल गाँधी और ब्रिटेन के विदेश मंत्री मिलीबैण्ड ने झोंपड़ी में रात गुज़ारी – एक समाचार ।

राहुल बाबा को तो आदत हो गई है पर बेचारे मिलीबैण्ड का तो मुफ्त में बैड़ बजवा दिया ।

बेरोज़गार हो रहे अमेरीकी युवकों को ओबामा से बहुत उम्मीदें –एक समाचार ।

अरे भाई , ओबामा पहले अपनी बेटियों के लिये कुत्ता तो ढूँढ ले फिर युवकों के लिये नौकरी भी ढूँढ देंगें ।

शाहरुख को देखने की तमन्ना के बाद सीमा पार कर सलमान को देखने पहुँचा एक अन्य किशोर जावेद -एक समाचार ।

आमिर सोच रहे होगें मेरा नंबर कब आयेगा ? घबराईये नही मिस्टर परफैक्शनिस्ट इस के बाद आप ही का नंबर आयेगा ।

आस्कर पुरस्कार की घोषणा के समय शौचालय में था – देव पटेल ।

उम्मीद है शाहरुख और सलमान ने यह समाचार पढ़ लिया होगा ,और अगली बार इस बात को ध्यान में रखेंगें ।

अलगावादी नेता यासीन मलिक पाक कलाकार से शादी करेगा – एक समाचार ।

यह तो बेमल जोड़ी बन गयी अब कौन अपना प्रोफशन बदलेगा ।

राहुल के बाद सोनिया ने दलित के घर रोटी खाई – एक समाचार ।

पास्ता खाया क्या ?

अलकायदा से डरने की ज़रुरत नही – गृहमंत्री चिदम्बरम ।

जनाब आप को डरने की क्या ज़रुरत ,आप को तो ज़ैड प्लस सिक्योरिटि के घेरे में है , डरने की ज़रुरत तो आम आदमी को है ,मरता तो आखिर में वो ही है ।

हमारी सेना हर खतरे से निपटने में सक्षम है - रक्षा मंत्री ए.के.एंटोनी

सेना हर खतरे से निपटने में सक्षम है और नेता हर मुद्दे को सुलझाने में अक्षम ।

Sunday, February 8, 2009

अंग्रेज़ इतने बुरे भी नही थे ???

पहला तर्क , “ ब्रिटिश राज ने हमारे अंदर भारतीय होने की भावना भरी । हम सब का एक ही पासपोर्ट था वह था इंडियन । “

बिल्कुल सहमत हूँ आपसे । हम पर उन्होंने इतने अत्याचार किये कि कशमीर से कन्याकुमारी तक किसी में कोई अंतर नही किया । और इन्ही अत्याचारों ने हमें भारतीय के रुप में संगठित हो कर अंग्रेज़ों के खिलाफ संर्घष करने के लिये प्रेरित किया । अगर आप अंग्रेज़ों के अत्याचारों को भारतीय होने की भावना से जोड़ते है तो आप सही है । पासपोर्ट ,यह मज़ाक लगता है वह एक आम भारतीय को ट्रेन के फर्स्ट क्लास के डिब्बे में तो बैठने नही देते थे ,जहाज़ में बैठने देते । हाँ अगर अंग्रेज़परस्तों को एक ही पासपोर्ट देने की बात है तो ठीक है ।

दूसरा तर्क , “ अंग्रेज़ों ने हमारे लिये टैलीग्राफ बनाया ,हमारे शहरों को सड़कों ,रेलों से जोड़ा ,बिजली पैदा करने के लिये नहरों और बाधों का जाल बिछाया । उन्होंने उद्योग और धंधों की शुरुआत की । “

उन्होंने भारतीयों के लिये कुछ नही किया जो किया अपनी हकुमत का प्रसार करने और भारतीयों का दमन करने के लिये किया । शहरों को सड़कों ,रेलों से जोड़ा ताकि वह भारत के दूर-दराज़ के इलाकों में अपनी सेना भेज अपना नियंत्रण कायम कर सके ताकि भारत के किसी भी हिस्से से अंग्रेज़ों का विरोध ना हो सकें । अब यह ऐसी चीज़े तो थी नही कि अंग्रेज़ जाते समय इसे छोटे टुकड़ो में काट कर किसी झोले या अटैची में डाल अपने साथ ले जाते ,ले जा सकते तो कोहिनूर हीरे की तरह इसे भी ज़रुर ले जाते । हमारे उद्योग-धंधे तो उन्होंने बर्बाद कर दिये । उन के आने से पहले देश सोने की चिड़िया कहलाता था ,अंग्रेज़ों ने इसे लूट-लूट कर दरिद्र और पिछड़ा बना दिया । शिक्षा का केन्द्र रहा भारत उसकी संस्कृति जैसी महान और वैज्ञानिक भाषा को भारतीयों के ही मन में तुच्छ और हीन भाषा बना ( और आज तरह-तरह के शोध कर हमें बताते है कि कम्पयूटर के लिये सब से सही और वैज्ञानिक भाषा यही है । ) अंग्रेज़ी हम पर लाद दी । खुद तो चले गये पर उनकी भाषा में पले मानसिकता वाले लोगों को हम आज भी ढो रहे है ,जो समाज के हर क्षेत्र में है जिन्हें हिन्दी में बात करने वाले लोग अनपढ़ और गंवार लगते है ।

तीसरा तर्क , “ उन्होंने नगर पालिका ,राज्य और केन्द्रीय विधान्सभाओं जैसी लोकतांत्रिक संस्थाएं स्थापित की । “

आम भारतीय की इस में क्या भूमिका थी ? आप समाचार-पत्रों और रेडियों की बारे में बताना भूल गये । इसकी शुरुआत भी उन्ही के शासनकाल में हुई थी ,पर सिर्फ अंग्रेज़ों के लिये । आम भारतीय को इस का प्रयोग कर अपने विचार प्रकट करने की इजाज़त नही थी , विशेष कर क्रान्तिकारियों को और ऐसा करने पर उन्हें सख्त सज़ा होती थी । और उन पर तरह-तरह के ज़ुल्म ढाये जाते ।

चौथा तर्क , “ अंग्रेज़ी शासन के दौरन कानून की इज्ज़त ज़्यादा थी । दंगे-फसाद व घेराव कम होते थे । सड़क और रेल यातायात को जाम करना बसों और रेलगाड़ियों को जलाना ,कारों की तोड़-फोड़ जैसी घटनाएं बहुत कम सुनाई देती थी ,भ्र्ष्टाचार कम था शायद ही कोई अंग्रेज़ अफसर रिश्वत लेता हो । मेरी पीढ़ी के किसी भी भारतीय से पूछ लीजिये वह इस बात की ताकीद करेगा कि आज के भारत की बजाये अंग्रेज़ों के वक्त में जान-माल ज़्यादा सुरक्षित था । “

पूरा तर्क मज़ाक तो लगा पर एक शर्मनाक और पीड़ादायक । क्या एक आम भारतीय में अग्रेज़ी कानून का अपमान तो दूर ,अवेहलना करने की भी हिम्मत थी ? अंग्रेज़ अफसर रिश्वत लेता ,पर किससे ? उन भारतीयों से जिन्हें वे पहले ही लूट-खसोट कर खा रहे थे । रिश्वत तो तब लेते जब व भारतीयों के पास कुछ छोड़ते या कोई भारतीय अंग्रेज़ अफसर को रिश्वत देने से इंकार करता इंकार करता तो मार-मार कर छमड़ी ना उधेड़ देते उसकी ,क्योंकि जानते थे कि एक आम भारतीय की एक अंग्रेज़ अफसर के खिलाफ कही सुनवाई नही होगी । दंगे-फसाद व घेराव कम होते थे ,एक भारतीय के दिल में अंग्रेज़ों ने अपने ज़ुल्म-सितम से इतना खौफ पैदा कर दिया था कि एक आम भारतीय अपने खून-पसीने से उगाये अनाज को बेबसी से अंग्रेज़ों के चुंगल में जाते देखता रहता पर अंग्रेज़ो के ज़ुल्म और पिटाई के डर से विरोध नही कर पाते थे वे क्या दंगे-फसाद ,सड़क और रेल यातायात को जाम करना बसों और रेलगाड़ियों को जलाना ,कारों की तोड़-फोड़ करने जैसा दु:साहस करते और जब घेराव कर अपनी बात कहने की जुर्रत करते तो लाला लाजपत राय जैसा कोई क्रन्तिकारी शहीद होता या फिर जलियाँवाले बाग जैसा काण्ड होता ।अंग्रेज़ों के वक्त में जान-माल ज़्यादा सुरक्षित था ,पर किसका । अंग्रेज़ों का या उन्के तलवे चाटने वाले चम्म्चों का । क्योंकि जहाँ तक जान की बात है तो आम भारतीय तो उन्की नज़र में इंसान ही नही थे , होटलों तथा अन्य जगहों पर टंगे ‘ dogs and - - - are not allowed ‘ के बोर्ड इस बात की पुष्ति करते है ,ऐसे में वो कितने सुरक्षित होगें इसे समझने मे ज़्यादा मुश्किल नही होनी चाहिये । और रही बात माल की , तो जब जान ही सुरक्षित नही तो माल की सुरक्षा का सोचना शायद मूर्खता ही मानी जायेगीं । और फिर अंग्रेज़ों ने किसी आम भारतीय के पास इतना माल छोड़ा ही कहाँ होगा जहाँ वह उन्का विरोध भी करें और सम्मापूर्वक भी रहें । और सबसे बड़ी बात लूटपाट कौन करता ? सबसे बड़े लुटेरे तो अंग्रेज़ खुद थे ।

पाँचवा तर्क , “ अनेक अंग्रेज़ों ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन किया । अंग्रेज़ इज्ज़त के साथ देश से गये उन्हें दूसरे यूरोपियन जैसे कि फ्रैंच ,डच , और पुर्त्गालियों की तरह ज़बरदस्ती धकेल कर बाहर नही निकाला गया । यही कारण है कि बहुत से भारतीयों के लिये अंग्रेज़ी राज एक यादगार की तरह है । अंत में बहुत से अंग्रेज़ी स्त्री-पुरुष थे जो भारतीयों को अपना दोस्त बनाने में काफी आगे तक गये । मै उन में से कुछ को जानने वाला भाग्याशाली था और यह मैने महसूस किया कि इस रिकार्ड को ठीक करना चाहिये । मुझे इस दृष्टिकोण से अंग्रेज़ परस्थोने में कोई शर्म नही है । “

लिस्ट बना लीजीये अगर सौ अंग्रेज़ों ने भी खुल कर अपनी सरकार के ज़ुल्मों का सार्वजनिक तौर पर विरोध कर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन किया हो । व्यक्तिगत दोस्ती या बात्चीत को इस में शामिल ना करें । अंग्रेज़ इज्ज़त के साथ गये ,बेइज़्ज़ती का अर्थ आप ने समझा ही दिया है । चले गये ,अगर थोड़ी देर और रहते तो ज़रुर जूते मार कर ही निकाले जाते । अगर आप यह सोचते है कि एक संधि पर हस्ताक्षार कर अंग्रेज़ तीन सौ साल के राज को खुशी-खुशी छोड़ कर चले गये तो इससे एक बच्चा भी इत्तेफाक नही करेगा । सच तो यह है कि वह इस मानसिकता के साथ यह देश छोड़ कर गये थे कि अनपढ़ और साँप-सपेरों का देश जो अपने लिये अनाज तक बाहर से मँगवाता है ,विविधताओं से भरा जिसमें कई धर्म ,जातीयाँ और वर्ग है ,एक देश के रुप में कभी एक नही रह सकता । देश से जाते समय अंग्रेज़ों ने अपमान का जो घूँट पीया वह उन्हें आज भी रह-रह कर दर्द देता है जब भारत कोई उपलब्धि हासिल करता है । उन से यह बर्दाश्त नही होता कि एक मुल्क जो 61 साल पहले उन के अधीन था आज 61 साल बाद विकास की नयी- नयी ऊचाँईयाँ छू रहा है वह सब हासिल कर रहा है जो हमने उन्ही के देश से कभी छीन कर अपने मुल्क की तरक्की की थी । अपने बराबर भारतीयों को खड़ा पा उन्हें तकलीफ होती है । विश्व पर धौंस जमाने के लिये खुद हथियारों का जमावड़ा करते है ,परमाणु परीक्षण करते है ,पर भारत को निशस्त्रीकरण पर भाषण देते है ,भारत की सुरक्षा ज़रुरतों के बावजूद भारत के परमाणु परीक्षण करने पर हाय-तौबा मचाते है । अपने देश में हुये आंतकवादी हमले का बदला लेने के लिये बिना सबूतों के दूसरे मुल्क पर हमला कर देते है और भारत पर आंतकी हमला होने पर भी उसे संयम बरतने को कहते है । सच तो यह है कि अंग्रेज़ों ने भारत को लूट कर खुद को विकसित किया और आज भी उनके विकास में भारतीय डाक्टर ,वैज्ञानिक ,इंजीनियर का ही योगदान है । खुशवंत जी अंग्रेज़ इतने बुरे नही थे तो आप बताये आज़ादी पाने के लिये क्यों हमारे पूर्वजों ने इतना संर्घष किया ,क्यों हमारे युवा क्रान्तिकारी हँसते-हँसते फाँसी के फंदे पर झूल गये । 61 साल बाद भी किसी भी दृष्टिकोण से आप को अंग्रेज़ परस्त होने में शर्म ना आती हो और आप के लिये अंग्रेज़ी राज एक यादगार की तरह होगा ।पर हम जब भी अंग्रेज़ी राज कू याद करेगें तो जलियाँवाला बाग लाला जी पर बरसती लाठियाँ ,फाँसी के फंदे पर झूलते युवा क्रान्तिकारी और भूखे-नंगे पेट और शरीर पर लाठियाँ खाते आम भारतीय ही याद आयेगें । हम हमेशा आभारी रहेगे अपने पूर्वजों के जिन्होंने हमे आज़ादी दिलायी । यहाँ हम अपनी मर्ज़ी से अपनी सरकार चुनते है ,स्वतंत्रता से अपनी बात कहते है । ईश्वर ना करे विश्व के किसी भी देश को किसी भी रुप में किसी दूसरे देश की गुलामी करनी पड़े ।

व्हाइट डौग इन व्हाइट हाऊस

आजकल हर जगह ‘स्लम्डाग मिलेनियर ’ की चर्चा है । कोई इस के विरोध में बोल रहा है तो कोई समर्थन में । कई समर्थक लेखकों के लेख पढ़ कर यूँ लगा जैसे वे मानते है कि भारत को अंग्रेज़ों से अच्छी तरह तो कोई जान ही नही सका । किसी को लगता है कि हम भारतीयों की सच्चाई की ही तो प्रस्तुति की है एक विदेशी । समझ में नही आता कि विदेशी अपने बारे में सच्चाई क्यों नही दिखाते । किसी अंग्रेज़ ने ईसराईल के हमले से घायल फिल्स्तिनीयों पर फिल्म क्यों नही बनाई । अमेरीका ने जापान पर परमाणु बम गिराने के बाद वहाँ क्या तबाही मचाई उस पर फिल्म क्यों नही बनाई । ईराक और अफगानिस्तान पर ज़ुल्म की फिल्म बना कर उसे आस्कर दे । आज की तारीख में विदेशों मेंरह रहे अन्य देशों के लोगों विशेष कर भारतीय सिखों और मुसलमानों तथा पाक मुसलमानों के साथ कया सलूक किया जा रहा ज़रा उसे भी तो फिल्म बना कर दिखायें ।अमेरीकन सेना ने ईराक में कितने अमानवीय अत्याचार किये है उस पर फिल्म क्यों नही बनाते । गाँधी जी पर फिल्म बना दी ,भगत सिंह और अन्य क्रान्तिकारियों पर कैसे-कैसे ज़ुल्म किये ब्रिटिश सरकार ने,जलियाँवाले बाग में कैसे निर्दोष लोगों को गोलियॊ से भून डाला जनरल डायर ने उन पर फिल्म बनाये ना । कोलम्बिया हादसे पर फिल्म बनाये । तानाशाहों को तो अय्याश कहते है पर दुनिया को अपने राष्ट्र्पति के बारे में भी तो बताये जिसने बेशर्मी की नई दास्तां लिखी । पूरी दुनिया देखेगी । बिल क्लिंटन-मोनिका लिवेंस्की पर फिल्म बनाये और नाम रखें , ‘ व्हाइट डौग इन व्हाइट हाऊस ’ फिर देखे कितने अंग्रेज़ खुश हो कर इसे देखते है और कितनी आस्कर श्रेणियों के लिये यह नामंकित होती है । पर दोष अंग्रेज़ों का भी नही हमारी मानसिकता ही कुछ ऐसी हो चली है कि जब भी पश्चिम का विरोध होता है अंग्रेज़ी मानसिकता में पले लोगों को देश के शिक्षित और सभ्य लोग भी दकियानूसी विचारों वाले लगने लगते है । इसी लिये इसके समर्थन में लेख पढ़ते-पढ़ते मुझे यह लेख याद आ गया । यह लेख ‘ अंग्रेज़ इतने बुरे भी नही थे ’ खुशवंत सिंह जी का लिखा है ,जो हिन्दी दैनिक पंजाब केसरी के 15 नवम्बर 2008 के सम्पादकीय में प्रकाशित हो चुका है । मैंने समाचार-पत्र के माध्यम से उन्हें इस लेख के विरोध में एक पत्र भेजा था जिस का जवाब आज तक नही आया । लेख पढ़ मुझे बहुत पीड़ा हुई यह सोच कर कि भारत की आज़ादी के 61 साल बाद भी आज भी ऐसे लोग है जो अंग्रेज़ी राज को बर्बर कहना तो दूर उसकी तारीफ में कसीदे पढ़ते है और स्वंय को अंग्रेज़परस्त कहने में शर्म महसूस नही करते । खुशवंत सिंह जी ने अपने लेख ‘ अंग्रेज़ इतने बुरे भी नही थे ’ में अंग्रेज़ों तथा अंग्रेज़ी राज की जम कर तारीफ की है । उनका मानना है कि हमारे इतिहासकारों ने अंग्रेज़ी राज की नकारात्मक तस्वीर चित्रित की है और भारत निर्माण में उनके ‘सकारात्मक ’ योगदान का कोई श्रेय नही दिया ,इसके लिये उन्होंनें ने कई तर्क दिये है । खुशवंत जी ने लेख में लिखा है कि उन्होंने आज से लगभग तीस साल पहले एक किताब लिखी थी ,‘ साहिब हू लव्ड इंडिया ’ पर इसे कोई तारीफ नही मिली ,उन्हें इस का पुन: प्रकाशन कराना चाहिये आस्कर या नोबल पक्का मिलेगा । दीपा मेहता ,मीरा नायर नायपाल , शेखर कपूर और अब स्लम्डाग मिलेनियर गवाह है इस बात के कि उन रचनाओं को पश्चिम में खूब सराहा जाता है जो भारत की बुरी ,बेहूदा ,नकारात्मक औछी और अश्लील्ता ( उनकी भाषा में सेक्स ) की चाशनी में डुबो कर तस्वीर पेश करें , उसका नोबल और आस्कर तो पक्का है ।

पंजाब केसरी के कई पाठकों ने उस लेख को पढ़ा होगा ,जिन्होंने नही पढ़ा उनके लिये मैं लेख में दिये तर्क दे रही हूँ । यह लेख उनके लेख तथा मेरे जवाबों को मिला कर मैंने तैयार किया है । उनके तर्क जस के तस दे रही हूँ । अपने जवाबों में मैंने कुछ और टिप्पणियों को शामिल किया है जो उस वक्त खत के लंबा होने के बारे में सोच कर नही दे पाई थी । भाग दो ‘ अंग्रेज़ इतने बुरे भी नही थे ’ में पढ़े इस लेख को ।

Saturday, January 31, 2009

खबरें और मेरी कलम की चुटकी

आज कल चुटकी लेने में कुछ मज़ा आने लगा है । तो लीजिये फिर हाज़िर हूँ कुछ और चुटकियों के साथ । और आज तो बसंत पंचमी का शुभ पर्व है । तो पर्व की शुभकामनाओं के साथ मज़ लीजिये नयी चुटकियों का ।

तारे ज़मीन पे - हिन्दी फिल्म का शीर्षक

आज कल तो कँगारु ज़मीन पर है ।

आस्कर से बड़ कर कुछ नही । - शाहरुख खान

इतना प्यार है आस्कर से तो ‘चक दे इण्डिया ’ की जगह ‘चक दे अमेरीका ’ कर लेते ।

राष्ट्रीय जाँच ऐजंसी का दुरुपयोग नही होगा - गृहमंत्री चिदम्बरम

जी, क्योंकि इसे कांग्रेस ने बनाया है तो ,इस का तो उपयोग हो जायें यही बहुत है ।

मात्र तेइस दिन में गज़नी ने रिकार्ड कमाई की – समाचार

आमिर की कार्यकुशलता देख क्यों ना उन्हें सत्यम का सी.ई.ओ बना दिया जायें ?

बिल्लू बार्बर में शाहरुख खान - समाचार

आएं - - बाल काटने की प्रैक्टिस तो आमिर खान ने की थी ।

पब की घटना शर्मनाक - माकपा

चलो यह ब्यान दे आप ने देश को यह तो बता ही दिया कि आप की पार्टी इसी देश में है चीन शिफ्ट नही हुई ।

आस्कर में जाली टिकटों की बिक्री -समाचार

सिर्फ टिकट की - -कही अवार्ड की भी तो - हें -हें -हें - हें ।

सैन्य कारवाई बच्चों का खेल नही – विदेश राज्यमंत्री आनंद शर्मा

जनाब बच्चों का खेल होती तो अब तक तो कांग्रेस कर भी चुकी होती । कांग्रेस के सारे निर्णय बच्चे ही तो करते है , बड़े तो बाबा के सामने सिर्फ अपनी मुंड़ी हिलाते है ।

मुन्नाभाई लड़गें चुनाव - समाचार

चुनाव लड़ने तक तो ठीक है पर कही संसद पहुँच वास्तव की भूमिका में ना आ जायें ।

रांझा कन्ना विच मुंदरा पवा के गवाची हीर फिरे लभदा - पंजाबी गीत ( मतलब रांझा कानों में बाली डाल कर खोई हीर ढूँढता फिरे )

राझें से कहो कि पुरानी हीर ने तो नया करोड़पति रांझा ढूँढ लिया है ,अब या तो वह ऐसे ही कन्न पड़वा नयी हीर ढूँढता फिरें या फिर बंदे दा पुत्त बन घर आ के कोई कमकाज करें ।

Thursday, January 29, 2009

मुबंई हमले के साठ दिन बाद

छब्बीस नवम्बर वह दिन था जब भारत पर आतंकी हमला हुआ था । पूरे साठ घण्टे चले उस हमले ने पूरे देश को हिला कर रख दिया । साठ घण्टे उस खौफ में बिताने के बाद देश्वासी गुस्से और पीड़ा से भरे हुये थे। नेता और सरकार के मंत्री लोगों के गुस्से से डरे हुये थे ,यही वजह रही कि हर घटना के बाद टी.वी पर तोते की तरह ब्यान देने वाले नेता इस बार चुप रहें । आम जनता ने रोष रैली ,प्रदर्शन किये । समाचार-पत्रों ,न्यूज़ चैनलस ,इंटरनैट पर अपने संदेश भेजे ।नामी-गिरामी हस्तियों ने मोमबत्तियाँ जला कर शांति प्रदर्शन किया ।लोगों ने आंतकवाद से लड़ने और पाक पर हमले की बातें की । सरकार ने भी कठोर कदम उठाने के वायदे किये । आम से लेकर खास तक में भावनाओं का ऐसा ज्वर उठा जैसा आज तक पहले कभी नही दिखा , लोगों ने शहीदों के प्रति सम्मान जताया और आतंकवाद को मुँह तोड़ जवाब देने के साथ ही नव-वर्ष को सादगी से मनाने का संकल्प लिया ।

आज मन में आया कि मुबंई हमले के साठ दिन बाद एक बार फिर पीछे की और देखा जायें । डर ,दर्द ,गुस्से और पीड़ा के साथ और भी कई तस्वीरे उभरी जो बेहद शर्मनाक थी । देश का आम आदमी जो उन साठ घण्टों में गुस्से और खौफ में था , नव-वर्ष से एक रात पूर्व सब भूल कर जशन में व्यस्त था । यह जशन ना सिर्फ बड़े महानगरों में था बल्कि छोटे शहरों में भी कुछ यही हाल था । इस तरह आम आदमी ने आतंकवाद को मुँह तोड़ जवाब दिया ।खिलाड़ियों ने खेल कर , फिल्मी सितारों ने अपनी फिल्मों की धमाकेदार लांचिग कर आतंकवाद को मुँह तोड़ जवाब दिया । न्यूज़ चैनलस ने कुछ दिन तक लोगों को आतंकवाद से लड़ने की शपथ दिलायी और फिर आमिर-शाहरुख की पर्दें और पर्दें की जंग पर स्पेशल रिर्पोट दिखा आतंकवाद को मुँह तोड़ जवाब दिया । आखिर में सरकार ,जी वे पहले भी आखिर में ही थी और आज भी आखिर में है । एक ओर हमारे प्रणव दादा बड़ी उत्तेजना में पाक को कड़ी कारवाई करने की चेतावनी दे देश की जनता को वरगलाते है तो दूसरी और नर्म ब्यान दे अमेरीका को संकेत दिया जाता है कि कुछ नही किया जायेगा । सरकार पाक से लड़ाई नही करेगी पूरा देश जानता था ,मत कीजिये पाक से लड़ाई ,पर देश के अंदर जो दुश्मन बैठे है उन से तो लड़े । पी.ओ.के शिविरों पर बमबारी नही हो सकती पर पुँछ हमारा अपना इलाका है वहाँ वायु सेना की कारवाई क्यों नही की गई ? पाक से आतंकी बाद में माँगना पहले अंतुले ,अर्जुन सिंह ,अमर सिंह जैसे नेताओं पर सख्त कारवाई करो जो उल्टे-सीधे ब्यान दे देश को पूरे विश्व के सामने शर्मसार कर रहे । सब जानते है आतंकी कहाँ से आ रहे तो ऐसे में उन्हें पकड़ कर जेल में डालने का कया मतलब ,सीधी बात है जो हमला करने आया है उसे खत्म करों । हम छोटे-छोटे देशों को सबूत दिखा रहे ,ऐसे देशों को जो स्वंय अपने गृहयुद्ध से नही निपट पा रहे वे आतंकवाद की लड़ाई में कैसे हमारा साथ दे सकते है ,समझ से परे है ।

यह तस्वीरे मन में पीड़ा पैदा करती है पर कुछ ऐसी तस्वीरे भी बनी जिससे सिर शर्म से झुक गया । नेताओं से तो कोई उम्मीद ही नही करता जैसे नेता समाज से हमारे बीच में से नही दूसरे ही गृह से आये है । नेताओं के बाद बारी आई अपनी फिल्म लाईन की । तमिलों के हक के लिये उपवास तक करने वाले हमारे साऊथ के अभिनेता मुबंई हमले पर नही बोले चलिये वे तो नही बोले पर हद की हमारी हिन्दी फिल्मी अभिनेत्रीयों ने । देश में डांस शो ना करने का वाय्दा करने वाली अभिनेत्रीयों ने देश के बाहर जा कर डांस शो किये । और आखिर में कुछ युवा शक्ति के बारे में भी पता कर ले । हमारे युवा सांसब हमले के बाद से खामोश है उनकी यही प्रतिक्रिया है । पर सब से बड़ा क्षोभ और खिन्न मुझे तब हुई जब मैने पढ़ा कि कर्नाटक के पब में डांस कर रही लड़कियों से मारपीट हुई । मैं इस समय मारपीट की घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त नही कर रही ,मुझे गुस्सा इस बात का है कि यह शहर यह भी भूल गया कि हमले में शहीद संदीप उन्नीकृष्ण इसी राज्य के थे ,क्या इतनी जल्दी यह राज्य उन्हें भूल गया ,ऐसे में हम कया उम्मीद करें अपने युवाओं से ।

अंत मे समाचार मिला कि पूर्व राष्ट्र्पति वेंकटरमन के निधन के कारण छ्ब्बीस जनवरी को राष्ट्र्पति भवन में होने वाला समारोह स्थगित कर दिया गया और सात दिन का राष्ट्रीय शोक भी घोषित किया गया है । बेहतर  होता कि शहीदों के सम्मान के लिये पहले ही कोई भव्य आयोजन ना किया जाता और क्या कभी ऐसा भी होगा जब देश के लिये शहीद होने वालों के लिये भी राष्ट्रीय शोक घोषित किया जायेगा चाहे वह साठ सैकेण्ड़ का ही क्यों ना हो ?

Monday, January 26, 2009

आज के दिन तो गर्व से कहें हम भारतीय है

आज गणतंत्र दिवस पर सुबह से टी.वी पर ,समाचार-पत्रों में ,इंटर्नैट पर इस दिवस के समाचार लेख देख सुन रही हूँ । कुछ भविष्य को ले कर आशावादी थे ,कुछ देश्वासियों के रवैये को ले कर आलोचनात्मक थे , कुछ जोशीले थे तो कुछ हताश थे । मेरा व्यक्तिगत मामना रहा है कि छब्बीस जनवरी और पन्द्रह अगस्त इन दो दिनों को हर देश्वासी को ऐसे मनाना चाहिये जैसे वे अपना जन्मदिन या कोई धार्मिक उत्सव मनाता है ,खुशी औए उत्साह से ,बिना किसी से झगड़ा या किसी की आलोचना किये । आखिर साल के बाकी दिन हमने यही करना है और यही तो करते है । आज के दिन खुश रहें ,गर्व करें अपने भारतीय होने पर । जोश और खुशी से मेरा मतलब कतई यह नही कि आप पी कर होटलों में डांस करें ,तेज़ रफ्तार गाड़ी चलाएं । खुशी माता-पिता व परिवार के साथ बैठ कर भी मनाई जा सकती है ,हर तरह की टेंशन भूल कर दिल खोल कर इस दिन का स्वागत करें । हमारे पूर्वजों ने बड़ी कुर्बानियाँ दे कर हमॆ यह दिन हासिल करके दिया है । अवश्य ही पिछले जन्म में हम ने कोई एक नेक काम तो ज़रुर किया होगा जो ईश्वर ने हमें महान ऋषि-मुनियों की ,ज़ोशीले क्रान्तिकारियों की ,ओजस्वी व विचारवान विचारकों की इस धरती पर आज़ाद भारतीय के रुप में जन्म दिया । आज का दिन उन्हें धन्यवाद देने का है । इसलिये आज के दिन को उतनी ही श्रद्धा से दिल से याद करें जितनी श्रद्धा से अपने ईश्वर को याद करते है ।

आलोचनाओं के लिये साल के बाकी दिन है और आलोचनाएं ज़रुरी भी है यही तो निर्माण तथा विकास के नये द्वार खोलेगीं ,पर आज के दिन इन्हें भूल कर मन से एक बार खुद पर भारतीय होने का गर्व करें । और रात को जब आप सोने लगें तो एक बार उन सैनिकों को अवश्य याद करें जो आज के दिन भी हमारी सुरक्षा के लिये कही शून्य से नीचे के तापमान में तो ,कही आग उगलते रेगिस्थान में सरहद पर पहरा देते हुये अपना फर्ज़ निभा रहें है ।

वे ना तो महज़ अपनी नौकरी के लिये न ही एक मराठी ,बंगाली ,पंजाबी या बिहारी के लिये नही बल्कि पूरे देश की सुरक्षा के लिये अपने वतन से प्यार की खातिर परिवारों से दूर बैठे है । इसलिये नमन करें उन्के इस जज़्बें को ,नमन करें उनके परिवारों के इस त्याग को 

“ जय हिन्द ,जय हिन्द ,जय हिन्द की सेना ।“

Monday, January 19, 2009

खबरें और मेरी कलम की चुटकी

कई समाचार होते है जिन पर चुटकी लेने कू दिल करता है ,पैश है ऐसे कुछ चंद समाचार और मेरी कलम की चुटकी ।

अभिनेत्री सोफिया ने सुरक्षा-कर्मी की बदतमीज़ी पर थप्पड़ मारा - एक खबर

अरे-अरे-अरे - - - बेचारा ,कही हौलीवुड अभिनेता होता तो अलग ही ट्रीटमैंट मिलता ।

गोलमा देवी मंत्री बन क्या करेंगी ? - एक खबर

वही जो प्रधानमंत्री बन मनमोहन सिंह कर रहे है ,दिये हुक्म को पूरा करना ।

मनमोहन सिंह जी अपनी पत्नी के साथ स्वंय लाईंसैंस बनाने गये । - एक खबर

बधाई दे मनमोहन सिंह जी को सरकार में रहते हुये उन्होंने कोई काम तो अपनी मर्ज़ी से किया । हमारे बड़ों ने कहा भी है कि काम छोटा या बड़ा नही होता ।

सहयोग करों वर्ना संबंध तोड़ देगें – गृहमंत्री चिदम्बरम

बोलते जाओ बोलने पर फिलहाल आप की सरकार ने कोई टैक्स नही लगाया है ।

मशीन के इस्तेमाल से बहरे सुन सकेगें –एक विज्ञापन

सरकार में मंत्री बनते ही सब को इस के एक पीस दिये जाये । मनमोहन सिंह जी को पूरा पैक भिजवा दीजेये ताकि मैडम जी के इलावा आम लोगों की भी सुन सकें ।

बेचैनी होने पर सोरेन को हस्पताल भर्ती कराया गया । - एक खबर

यह तो गुरु जी का दिल मज़बूत था जो पहले चुनाव में हार और फिर मुख्यमंत्री पद गवाँने के बाद भी मामूली बेचैनी ही हुई ।

पाक को भारत पर पहले हमला कर देना चाहिये - मुशर्रफ

लगत है कारगिल भूल गये हो ।

दाऊद नाना बना । - एक खबर

मनमोहन सिंह जी बधाई कार्ड कार्ड भेज रहे है ना !

आस्कर और नोबल प्राईज़ में भी धोखाध्ड़ी के आरोप । - एक खबर

खामोश । आमिर खान नाराज़ हो जायेगें ।

आशा है यह चुटकियाँ पसंद आयेगीं ।

Friday, January 16, 2009

चुनाव में नेताजी और जानवरों में समानता

एक गाँव में हिंदी का पेपर शुरु होने वाला था । पेपर बाँटते समय ही मास्टर जी ने सख्त ताकीद कर दी कि प्रश्न-पत्र के बारे में कोई भी उन से कुछ नही पूछेगा ,जिस की समझ में जो आयें लिख दें । इस का सबसे बड़ा कारण था कि उनकी पत्नी अनारों देवी विधानसभा चुनाव हार गयी थी और मास्टर जी का रोम-रोम गुस्से से सुलग रहा था ।प्रश्न-पत्र बाँट कर मास्टर जी अंग्रेज़ी की फिल्मी पत्रिका देखने में व्यस्त हो गये और बच्चे हिंदी का पेपर हल करने में जुट गये । प्रश्न-पत्र में निबंध के प्रश्न में लिखा था - नीचे दिये विषय पर निबंध लिखें । प्रश्न अनिवार्य है ।

चुनावों में नेताजी और जानवरों में समानता ।

प्रश्न पढ़ छात्र बेचारे परेशान ,एक दूसरे को देख रहे है ,मास्टर जी से पूछने की किसी में हिम्मत नही हो रही । पर कुछ समझ में भी नही आ रहा था । हुआ यूं था कि प्रश्न-पत्र छापने वाले ने प्रश्न तो सही छापा था बस साथ में यह नही छापा कि इन दोनों में से किसी एक पर निबंध लिखना है ।

बाकी सब ने तो उस प्रश्न को हल नही किया पर उन में से एक छात्र ने निबंध पर लिखने का फैसला कर लिया । वह लड़का अपने पिता के साथ चुनावी रैलियों में नेताओं के पक्ष में नारे लगाने जाता था ,उसे लगा उसका वह अनुभव इस प्रश्न को हल करने में काम आ सकता है । और उस ने कुछ इस तरह से निबंध लिखा -

चुनावों में नेताजी और जानवरों में बहुत समानता होती है यह नीचे दिये तथ्यों से साबित होता है -

कौआ - चुनावों में नेताजी कौऐ की तरह कांय-कांय करते है ।

कुत्ता - चुनावों में नेताजी अपने विरोधियों पर कुत्ते की तरह भौंकतें है ।

तोता - तोते की तरह एक ही वायदे को बार-बार दोहराते है ।

गधा - गधे की तरह काम करते हुये दिन में कई- कई रैलियाँ कररते है ।

उल्लू - उल्लू की तरह रात-रात जाग कर प्रचार करते है ।

बंदर - बंदर की तरह कभी गाड़ी पर तो कभी उड़नखटोले पर चढ़ते है ।

गिरगिट - गिरगिट के तरह पार्टी और ब्यान बदलते है ।

खरगोश - खरगोश की तरह अपने विरोधियों से तेज़ भागने की कोशिश करते है ।

उपरोक्त बातों से सिद्ध होता है कि चुनावों में नेताजी और जानवरों में अधिक अंतर नही होता ।

पूरा निबंध लिखने के बाद लड़के ने उसे दो बार पढ़ा कि कही उस में कोई गलती तो नही ,आखिर दस नंबर का सवाल है , फिर जब छात्र को पूरी तसल्ली हो गयी तो उसने हल की हुई शीट मास्टर जी को सौंप दी ।

अब कृप्या आप यह मत पूछिये कि उसे कितने अंक मिले । हाँ अगर छात्र का निबंध आप को पसंद आया हो तो एक प्रतिक्रिया ज़रुर दीजियेगा , आगे भी इस तरह के निबंध लिखने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा ।

Thursday, January 15, 2009

क्या उद्योगपति देश के नागरिक नही है ?

देश के उद्योगपतियों ने गुजरात में समारोह के दौरान मुख्यमंत्री मोदी की जम कर तारीफ की और उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिये एक योग्य उम्मीदवार करार दे दिया । अब यह बात कांग्रेस को कैसे हज़म हो जायें । एक तो मोदी की इतनी तारीफ हो जायें और ऊपर से उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिये एक योग्य उम्मीदवार तक कह दिया जायें जिस पर गाँधी-नेहरु परिवार के इलावा और किसी का हक ही नही । जिस पर किसी और का बैठना तो दूर किसी और को उस के बारे में सोचना भी नही चाहिये । लिहाज़ा कांग्रेस को मिर्ची लगना स्वभाविक था पर जलन में कांग्रेस ऐसी प्रतिक्रिया देगें इस की उम्मीद नही थी । कांग्रेस प्रवक्ता मुनीष तिवारी का कहना है देश के मामलों में उद्योग जगत टाँग ना अड़ाए । क्यों ? क्या उद्योगपति देश के नागरिक नही है ? तो फिर वे अपने विचार क्यों ना प्रकट करें । कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि देश का प्रधानमंत्री उद्योग जगत की हस्तियां नही बल्कि देश की जनता चुनती है । बोलने से पहले कांग्रेस प्रवक्ता कुछ सोच तो लेते ,मनमोहन जी को प्रधानमंत्री देश की जनता ने नही आप की मैडम जी ने चुना था । आप ने तो चुनावों में किसी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार ही घोषित नही किया था ।

क्या दाउद को भी कार्ड भेजा जायेगा - समाचार है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पाक राष्ट्रपति ज़रदारी को नव वर्ष की शुभकामनाओं वाला ग्रीटिंग कार्ड भेजा है । समझ में नही आता कि मनमोहन जी देश को किस-किस तरीके से शर्मसार करने पे तुले है ,क्या शर्मसार करने का विश्व रिकार्ड बनाना चाहते है । कभी आई.एस.आई चीफ को बुलाते है ,कभी हर विक्लप खुले रखने की बात करते है ,कभी युद्ध को समस्या का हल नही कहते है । और अब ज़रदारी को नव वर्ष की शुभकामनाओं वाला ग्रीटिंग कार्ड भेज दिया । संदेश लिखने के लिये स्याही की जगह क्या पता मुबंई हमले में मारे गये लोगों का खून इस्तेमाल कर लिया हो , अब तो आप से यह उम्मीद भी की जा सकती है । वैसे एक और खबर है कि दाउद नाना बन गया ,मुबारक का एक कार्ड अगर आप उसे भी भेज देगें तो अब देश की जनता को इस पर भी कोई हैरानी नही होगी । देशवासी अब आप को हर वह काम करता देखने के आदी हो गये है जिससे देश शर्मसार होता हो ,इसलिये लोगों की परवाह मत कीजिये ।

Sunday, January 11, 2009

कितनी खुशी की बात है ,भगवान, बधाई मनमोहन जी !

कितने दिनों के बाद मनमोहन जी को इतनी खुशी मिली होगी भगवान - - । आखिर पाक मान ही गया कि कसाब उसका नागरिक है । अब ? अब यह सीरियल थोड़ा आगे बढ़ेगा वर्ना तो सास बहू स्टाईल में ही चल रहा था । सब के ज़ेहन में सवाल यह है कि अब आगे क्या होगा ? अरे भाई इतने सास-बहू सीरियल देख लिये है अब तो यह सवाल ज़ेहन में आना ही नही चाहिये । और इतने सालों से सरकारों को अपनी उपलब्धियों पर जशन मनाने के तरीकों को भी तो देखा है या तो छुट्टी मनाते है या फिर समारोह करते है ।

अब क्योंकि यह तो बड़ी खुशी की बात है तो ज़ाहिर है देश में पाँच या दस दिन की छुट्टी होगी । हमारे शहर के शिक्षण संस्थानों में तो हो भी गयी ,हालांकि छात्र और अभिभावक यही समझते है कि धुंध और सर्दी के कारण हुई है । एक दिन के लिये बैंक भी छुट्टी करेंगें । नकद या चैक अगर निकलना या बनवाना चाहते है तो अभी कर लीजिये । फिर बड़ी-बड़ी रैलियाँ और सैमीनार होगें ,आखिर उपलब्धि भी तो छोटी-मोटी नही है ना ! फिर दो-तीन दिन बाद समाचार पत्रों और टी.वी पर घोषणा होगी कि फलां दिन प्रधानमंत्री राष्ट्र को सम्बोधित करेगें । फिर निश्चित दिन व समय पर प्रधानमंत्री जी मैडम जी की इजाज़त ( सौरी आर्शीवाद ) से राष्ट्र को सम्बोधित करेगें , मेरे प्यारे देश्वासियों आप जानते ही हो कि आज कितने दिनों बाद मैं खुशी और राहत महसूस कर रहा हूँ । आखिर सोनिया जी, राहुल बाबा और बुश जी की कोशिशों से पाक ने कसाब को अपना नागरिक मान लिया है । पाक ने बुश जी से वायदा किया है कि जिस दिन भारत कसाब को उसके हवाले करेगा वे उस पर मुकदमा चला कड़ी सज़ा देगें ,पर इस से पहले कि कसाब को हम लाटस आफ गिफ्ट दे समझौता एक्सप्रैस में रवाना करें हम उसे देश के लोगों के सामने लाने के लिये बाकायदा एक समारोह करेंगें और उस में देश की बड़ी हस्तियों को बुलायेगें , नाम तय करने के लिये मैडम आज मीटिंग करेंगी । सोनिया माता की जै ,धन्यवाद ।

रात को कैबिनट की बैठक होगी जिस में हर बार की तरह मैडम जी बोलेगी और बच्चे ( मंत्री जी ) सुनेगें । मीटिंग के फैसले कुछ ऐसे होगें - इतने बड़े काम को करने के लिये पार्टी मनमोहन जी को भारत रत्न तथा प्रणव दादा को बहादुरी का कोई पुरस्कार देने की सिफारिश करेगी । आखिर इस में प्रणव दादा की ब्यानबाज़ी को भी तो सम्मान मिलना ही चाहिये । इतना बोलने से पता नही प्रणव दादा का कितना वेट लूज़ हो गया होगा । दूसरे फैसले में तय किया जायेगा कि कौन मंत्री बोलेगा । मनमोहन जी क्हगें कि मेरे लिये भाषण देना बुश जी से बात करने जितना आसन थोड़े है ,यह काम तो मैडम जी या देश का भविष्य राहुल जी ही कर सकते है । तब मैडम जी यह काम भी प्रणव दादा के नाज़ुक कंधों पर ही डाल देगी । बाकी सब मंत्रियों को चुप रहने के लिये कहा जायेगा । डर भी होगा कि चिदम्बरम जी कसाब पर बोलते-बोलते कही होम लोन की ब्याज दरों पर ही ना बोलने लगें । इसी तरह लालू रेलवे पर और पासवान निजी कम्पनियों में आरक्षण पर ना बोलने लगें । अब मेहमानों की लिस्ट तैयार की जायेगी । प्रियंका गाँधी ,अमर सिंह जावेद अख्तर ,कुलदीप नैयर , अमिताभ बच्चन ,खुशवंत सिंह ,आमिर खान ,शाहरुख खान ,राम जेठमलानी ,एम.एफ.हुसैन ,अंतुले और शिवराज पाटिल । पाटिल जी से अपने नये तथा मँहगे वस्त्र और जूते पहन कर आने के लिये कहा जायेगा ताकि समारोह की शान बढ़े। सब मेहमान कसाब से एक-एक प्रश्न पूछ सकते है । जैसे प्रियंका जी पूछ सकती है कि कसाब ने इतने लोगों को क्यों मारा , कुलदीप जी मोमबत्ती जला सकते है ,अमर सिंह जी कसाब के लिये ज़्यादा सुविधाएं माँग सकते है ,हुसैन पेटिंग बना सकते है ,अमित जी कसाब की मानसिकता जान सकते है । सब को बोलने के लिये एक मिनट मिलेगा सिवाये शाहरुख और आमिर के । क्योंकि शाहरुख को कसाब बोलने में एक मिनट लग जायेंगा और आमिर को एक मिनट यह समझने में कि वे वहाँ ना तो अपनी फिल्म के प्रचार के लिये आये है और ना ही अपने सहयोगी कलाकारों का मज़ाक उड़ाने । मीटिंग में जिन लोगो के आने पर पूर्ण प्रतिबंध होगा वे है – मनिंदर्जीत सिंह बिट्टा ,के.पी.एस.गिल ,नरेन्द्र मोदी शिव सेना और आर.एस.एस के सभी शाखाओं के नेता । कसाब की सुरक्षा के लिये उसे मनमोहन, प्रणव और चिदम्बरम के बीच बिठाया जायेगां । आखिर में कसाब तथा आये मेहमानों को कबाब और अन्य व्यंजन दिये जायेगें और फिर आखिर में सब डी.जे की धुन पर नाचेगें आज से पहले आज से ज़्यादा खुशी आज तक नही मिली , मनमोहन जी गायेगें , आजो सारे रल मिल भगंड़ा पा लईये । इन सारे फैसलों की जानकारी मीडिया को देने की ज़िम्मेदारी भी मैडम ने प्रणव दादा के ही नाज़ुक कंधों पर डाल दी ।

मीटिंग खत्म करने से पहले मैडम जी ने सब को आदेश दिया कि समारोह शुरु होने पर सब मंत्री अपने नाम के साथ अपना पद बतायेगें , इस लिये रिर्हसल की जायें , पर उस समय हुई रिर्हसल के दौरान चिदम्बरम जी खुद को वित्त मंत्री बोल गये ,जिससे नाराज़ मैडम जी ने उन्हें कागज़ पर सौ बार गृहमंत्री लिखने और इतनी बार बोलने की सज़ा दी । और उन पर नज़र रखने के लिये राहुल बाबा को छोड़ कर मीटिंग खत्म कर दी ।

अगले दिन टी.वी पर इस शानदार समारोह को देख कर बुश जी ने खुश हो कर मनमोहन जी को बधाई दी और शांति का नोबल प्राईज़ या अमेरीका का सबसे बड़ा पुरस्कार दिलाने का भरोसा दिया ।

Monday, January 5, 2009

मनमोहन जी ,किस का पुनर्जन्म है ?

लेख पढ़ने वाले सभी पाठकों को नववर्ष की शुभकामनाएं ।

दिसम्बर महीने के शुरु में सर्दी की चपेट में आने की वजह से मुझे दो बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ा जिसके कारण मुझे पूरा महीना बैड पर अस्पताल के कमरे की छत और दीवार को देख कर या फिर टी.वी पर मंत्रियों के अजीबों-गरीब ब्यानों को देख- सुन कर गुज़ारने पड़े । कभी-कभी अपने प्रधानमंत्री मनमोहन जी को भी देख लिया , देख कर तसल्ली हुई कि वे देश में ही है ,बुश की विदाई जैसे बड़े मौके पर भी वे अमेरीका नही जा रहे । महान त्याग किया ,मैडम जी से सीखा होगा ।

बैड पर बैठे-बैठे टी.वी देखते हुये एक दिन मैंने कार्यक्रम देखा जिस में एक अमेरीकी शोधकर्ता अमिताभ ,शाहरुख ,नेहरु ,आदि कई भारतीयों के पुनर्जन्म के बारे में बता रहा था । पर अचानक मुझे ध्यान आया कि इस में मनमोहन जी के पुनर्जन्म के बारे मे नही बताया गया है । इस पर मुझे एक कहानी याद आ गयी जो मैने अपने बचपन में सुनी थी ।

एक राज्य पर उस का पड़ोसी राज्य हमला कर देता है । राजा अपनी सेना के साथ युद्ध में कूद पड़ता है । उसका सेनापति दिल का नेक पर काफी डरपोक व बड़बोला था । जोशीली ब्यानबाज़ी से जनता को मूर्ख बनाता रहता था । इसी कारण वह डर से युद्ध के मैदान से भाग कर घर आ जाता है और अपनी माँ और पत्नी से सामान बाँध दूसरे राज्य में चलने को कहता है । जब उसकी माँ और पत्नी सामान बाँध रही होती है वह बाहर बैठ जाता है । अचानक अंदर से बर्तनों के ज़ोर-ज़ोर से खड़कने की आवाज़ें आती है ,इस पर सैनिक की माँ अपनी बहू से कहती है कि मेरा बेटा तलवारों के आपस में टकराने की आवाज़ों के डर से ही तो भाग कर घर आया है तू ज़ोर-ज़ोर से बर्तनों को खड़का कर उसे डरा रही है । बाहर बैठा सैनिक यह सुन लेता है ,वह अपनी माँ से कहता है कि वह समझ गया कि जब देश खतरे में हो तो सैनिक का फर्ज़ लड़ते हुये विजय हासिल करना या शहीद होना होता है । ऐसे में डर य ब्यानबाज़ी का कोई काम नही होता ।

यह तो थी कहानी पर सवाल तो यह है कि मनमोहन जी ,किस का पुनर्जन्म है नीरो का- - ना । नीरो कम से कम बाँसुरी तो बजा ही रहा था जब रोम जल रहा था पर हमारे मनमोहन जी मुबंई हमलों के बाद से ले कर अब तक क्या कर रहें है ?